Sunday, 10 March 2013

मंथन

तू मस्त मौला फ़क़ीर बन समाधिस्त नृत्य करता है,
वेदों में समा कर मोक्ष मार्ग बन जाता है,..

समुद्र मंथन के याचक, यहाँ सब कोई 'अमृत' है पीना चाहता,
 पर जो विष का प्याला गटका जाए,  वोही "शिव" है कहलाता .
पंचाक्षरी मंत्र हर नशे से परे बहता ले जाता है,
'रूद्र' अति रूद्र जीव धरा बन जाता है,.
हे शिव तेरी महिमा का व्याक्यान हर सागर धरा बया करेगी,
जिसकी  बूंद बूंद उम्मीद, तेरा अभिषेक करना  मोक्ष है.

ना दूबों तुम व्यर्थ संसार के , इस भांग के नशे में,
डूब जाओ शिव के भक्ति रस में,,
वाल्मीकि वसिस्थ व्यास शिद्धार्थ ,
सब ले चुके आनंद इस शिवातामा  के।