उल्जन का तकाज़ा मेरी उम्र के साथ बंधा है,उसमे भी थोड़ी कमी थी,
की ग्रहों का परिभ्रमण शरू हो गया।
और सारा विश्व मेरा हो गया। 1)
आहिस्ता नापने से मुसीबतों का नाप कम नहीं होगा,
आखें फाड़ देखने से अँधेरा दृश्यमान नहीं होगा।
उचे उड़ने से आसमा का कद नीचा नहीं होगा।
कर्र परिश्रम और बिठा चक्रधर,..सरे सितारे तेरे कन्धों में समा जायेंगे....2)
विश्व-करमा ने 'काशी' खोजनी चाही तोह, स्वयं काशी विश्वेश्वर ने राह दिखाई।
पाप का सहभोगता पूछे जाने पर 'विरिंची' अकेला रुका रहा।
स्वयं 'देवर्षि' ने उसे 'व्यास' मुनि सन्मान अर्चित किया ,
कुछ प्रश्न के उत्तर ढूंढे चाहे तोह ज़िन्दगी है बदल जाती।
सत्य की खोज में सिर्फ स्वयं सत्य
दीर्घ सत्य और सत्य...की ही है समज रहती। 3)
(the search of Truth begins...)
No comments:
Post a Comment