Thursday, 7 June 2012

The Myth & God only Knows...

उड़ जा...उड़ जा...अपने मन के पंखी छोटा न कर,..ज़लज़ला साहस पा।
उड़ जा...उड़ जा....।                   1)

मन मुक्त द्वार है, जिस्म कोइला बन जाये,
इस बेरंगी जहां में, बस दो नैन काफी देख जाए ,
मन की नैनों से देख तोह ये मिजाज रंगीन दिख जाए।
पारदर्शक समुंदर आगे खड़ा हो
स्वानंद भिखेर जाए,....उड़ जा..।     2)

हर आयुष कम है, यु ही अगर जीये  जाए, कर्म सिधि जो बहे रुधिर में,
हर् सुख,सुख रहे,...निर्मल मन से , हर दुःख सुख बन जाए।
आत्मानन्द  को सिद्ध करने की बात हर चौराहे में मिले,
पर इसकी खोज पे, एक छोटी गली ले जाए,
ये रास्ता एक मन ही तै करे, मस्तिष्क एक चैतन्य बन जाए,...उड़ जा...।    3)

हर व्र्शक बारिश बाट जोखे , अनायास सफल वो व्र्शक बन जाए,
बारिश में ही जनम लिए, त्वरित फल चख जाए।
वैसे ही हर्र आत्मा समाधी जोखे, पर विशु-आत्मा न बन पाए,
व्र्शक नियम सिद्ध यहाँ लगे,

गुरु जनम....जनम संग सार्थक बन जाए,....उड़ जा...।                        4)



(the path of truth...search for the GURU, the teacher begin....)

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