Saturday, 16 June 2012

Part II - सारथी और पारधी

अगर प्यास है, और वह पानी भी है
समजना की वह बाल्टी नहीं है                                         1)

घूंघट है पर आँचल नहीं,
सुंदरता है पर खूबसूरती नहीं, शर्म है पर लज्जा नहीं,
समजना की ये धरा पत्तर है पर पैदावार नहीं                      2)

शुन्य है और सिर्फ शुन्य - काल है,
किसी का प्रतिबिंब वृक्श नहीं,
और ध्यान समाधि रची, फिर भी कल की चिंता बची,
वे  लेट जा उसी चित्त मे, और चिता भस्म सब से पवित्र है    3)

सत्य की खोज में चला हु,
पंथक का गुरु भी सत्य चाहता हु।
और पथ भी सत्य मांगता हु,
हर संभावनाओं से निर्विकार हु, मेरी इच्छा निराकार है और ये मेरी आत्मा का आविष्कार कमाता हु,
जैसे ही सब अदृश्य हो जाए,
मेरा मन मोक्ष पे निकल जाए,
और में सत्य समाधी विसक आकारता हु,

सत्य की खोज में चला हु।
सत्य मेरा सारथी, सत्य का पराधी में खड़ा हु।
सत्य की खोज में चला हु।......                                           4)

(on the path of the Truth with Truth as my Guru - the Teacher )

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