कहर का राग जब भ्रह्मांड ने हमको सुनाया, तब अर्पितों का जनम हुआ।
मौत का नंगा तांडव और समय बीम बजा रहा था।
खल्वाल्ला-वल्ल्खाल्ला और मेरु शाखा मंद हो चुकी थी।
शायद इश्वर श्रद्धा अनुरूप ये ज़रूरी है,
मौत की ज़िन्दगी से बस एक कदम की दुरी है। 1)
ज़िन्दगी हमने कितने ख्वाब का चर्चा किया, बड़े बिल्डिंग सोंधे,
ख्यालों में सपनों का आशियाना बसा।
पर एक ही परम सत्य, जिसका अनदेखा हम करते है।
जब मौत की दस्ता छूती है, अपनी परछाई भी अपनी न रहे,
अपनी ज़िन्दगी में बस मौत का ही साथ है।
अपनी ज़िन्दगी में बस मौत का ही साथ है।
शायद इश्वर श्रद्धा अनुरूप जरुरी है,
मोती की ज़िन्दगी से बस एक कदम की दुरी है। 2)
क्या जहाज़ ज्हुमे सागरों पे,हम आज पहोच रहे सितारों पे।
आज हमारे पास क्या नहीं है संसाधन, पल भर में हम रोशिनी-आवाजों की राफतारों को चुनौती दे।
आरामदायक आलिषाओं की कमी नहीं।
पर तेरे वश में तेरी खुद की ज़िन्दगी नहीं।
क्या तू कर्र सके तेज़ अपनी धड़कन की रफ़्तार,
क्या तू भर्र सके अपने आतार्डों में ख़याल।
....और फिर बस छोटी सी फूंक,..धीरे से आती है।..
और बहार निकली सांस, उन्दर आना भूल जाती है।
हर वक़्त ये हमपे नज़र ताके रहती है।
शायद इश्वर श्रद्धा अनुरूप ये ज़रूरी है,
मौत की ज़िन्दगी से बस एक कदम की दुरी है। 3)
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