काली हवा का बुदबुधा ,
घूमते हुए उस अवकाश से यहाँ आया
sulphur dioxide , hydrogen peroxide, nitro का मिक्स्तुर था।
खूब उसे घोला पिटा भूना और तला गया।
फिर उस से भाप निकली, खो गयी कही,
फिर आसमा बना ये धरती बनी और समय ने परिभाषा बनाई ,
खुद भी बन गया
समय के अधिकार की सीमा तै हुई।
और फिर सब खो गया, रहा तो सिर्फ कुछ नहीं...परी आई और चली गयी,
अंधकार और उजाला सब सफ़ेद था,
और कही दिशा का निर्देश नहीं था।
सोमम रात और दिन,सुबह और शाम, नींद और ख्वाब सब कुछ ढूंढते,ढूंढते बुड्ढा हो गया,
फिर मनुष्य का जनम नहीं किस अधिकार में हुआ.....
घूमते हुए उस अवकाश से यहाँ आया
sulphur dioxide , hydrogen peroxide, nitro का मिक्स्तुर था।
खूब उसे घोला पिटा भूना और तला गया।
फिर उस से भाप निकली, खो गयी कही,
फिर आसमा बना ये धरती बनी और समय ने परिभाषा बनाई ,
खुद भी बन गया
समय के अधिकार की सीमा तै हुई।
और फिर सब खो गया, रहा तो सिर्फ कुछ नहीं...परी आई और चली गयी,
अंधकार और उजाला सब सफ़ेद था,
और कही दिशा का निर्देश नहीं था।
सोमम रात और दिन,सुबह और शाम, नींद और ख्वाब सब कुछ ढूंढते,ढूंढते बुड्ढा हो गया,
फिर मनुष्य का जनम नहीं किस अधिकार में हुआ.....
No comments:
Post a Comment